Monday, June 28, 2010

क्या आप भगवान में विश्वास करते हैं.????




यह तब की बात है जब मैं 5 साल का था . मैं खेल के मैदान में खेल रहा था ...... "छिपन - छिपाई " ..... कॉलोनी के बच्चों के एक बड़े झुंड के साथ.... एक नयी छिपाने की जगह की तलाश में ..... मैं एक लोहे की कीलों एवं कांच भरी जगह में चला गया. सोचा " मैंने जूते तो पहने हैं . कुछ नहीं होगा " .... और फिर वाही हुआ जो भाग्य में था ... जूते होने के बावजूद एक कील सीधे जूते को नीचे से पार करती हुई मेरे पैर के तलवे में जा घुसी......... तकरीबन २ इंच लम्बी लोहे की कील ........ नरक !!!!! दर्द ..... बहुत ज्यादा था .. किन्तु जो बात दिमाग में थी उस समय वो यह के इस कील को बहार कैसे निकालूं ........ मैंने कुछ नहीं सोचा... और एक झटके से पैर से जूता निकाल फेका और रक्त का एक सोता जैसे फुट पड़ा हो उस समय ...... तब तक बाकी साथी भी वहाँ आ गये थे ........... किसी तरह गोद में उठाकर वो लोग मुझे घर लाये ......... इतनी ज्यादा चिंता इतना ज्यादा तनाव ......... इतना दर्द ......... और अचानक सब गायब हो गया ........ लगा मनो मैंने परमेश्वर का चेहरा देख लिया हो .... क्योकि जिसे सबसे पहले देखा था मैंने घर पहुँच कर वो मेरी माँ का चेहरा था .......... उस समय लगा मुझे कि क्या माँ का चेहरा , उस परमेश्वर का चेहरा था ?



एक बार मैंने इश्वर को महसूस किया ...... जब मैं 9 या 10 साल के आसपास का था ..... मेरे घर के मेन गेट पर एक गलियारा है ...... मेरे बचपन क्रिकेट स्टेडियम ..... मुझे याद है ....... हम क्रिकेट खेला करते थे...... मेन और मरे भैया .... भैया मुझसे 5 साल बड़े हैं ...... खेल के नियम थोड़े अलग होते थे ..... पहली बल्लेबाजी सदा मेरी होती थी.....मैं आउट तब ही माना जाता था जब तक मैं 3 बार आउट नहीं हो जाता था .. और भैया तब भी आउट माने जाते थे ..जब गेंद एक बार धरती से भी बाउंस हो कर मेरे हाथ में आ चुकी हो ....... और तो और मैं कई बार उन्हें उनकी बल्लेबाजी दिए बगैर भाग जाता था ....... हम लोग घर में कुश्ती भी खले करते थे..... अखाडा होता थे घर का बिस्तर..... कई बार मैं उन्हें जोर से मार देता था ....... वो दर्द से कुछ देर क लिए रुक जाते पर फिर थोड़ी देर बाद हम लोग फिर शुरू हो जाते ....वो सब यादें मेरे मन में अब भी है ........ पर आज सोचता हूँ की क्यों कभी मुझे दर्द नहीं होता था उनके साथ कुश्ती खेलने पर ..... क्यों मुझे हर बार अपनी बल्लेबाजी मिलती थी..... कभी कभी लगता है, क्या वो आत्मा परमेश्वर की आत्मा थी जो मेरे साथ खेलती थी ?


एक बार उसे महसूस किया ....... जब गर्मियों का मौसम था ........ मैं 12 या १३ साल का था ..... गर्मी झुलसानेवाली पड़ रही थी ......... शाम का समय बहुत अच्छा होता था....... इसलिए नहीं कि वातावरण में ताजगी और ठंडक घुली होती थी ..... लेकिन इसलिए कि पिताजी रोज़ शाम को ice cream लाते थे....... लेकिन वह स्वयं कभी आइसक्रीम नहीं खाते थे......और उनके हिस्से कि ice cream भी मुझे खाने को मिलती थी.......वे कहते थे कि उन्हें ice cream पसंद नहीं...... और मैं ज्यादा ice cream पाकर खुश हो जाता था ......... एक बार मैंने देखा वे मुझे ice cream खाते हुए देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे ....... और सच मानिये मैंने उस समय भगवान् को देखा था .........


मैं तो भगवान् पे विश्वास करता हूँ .... क्या आप करते हैं ????